राष्ट्रपति भवन की भव्यता बहुआयामी है। यह एक विशाल भवन है और इसका वास्तुशिल्प विस्मयकारी है। इससे कहीं अधिक, इसका लोकतंत्र के इतिहास में गौरवमय स्थान है क्योंकि यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति का निवास स्थल है। आकार, विशालता तथा इसकी भव्यता के लिहाज से, दुनिया के कुछ ही राष्ट्राध्यक्षों के सरकारी आवासीय परिसर राष्ट्रपति भवन की बराबरी कर पाएंगे।
मौजूदा राष्ट्रपति भवन पहले ब्रिटिश वायसराय का निवास स्थान था। इसके वास्तुकार एडविन लैंडसीयर लुट्येन्स थे।मुख्य इमारत का अधिकांश कार्य एक मुस्लिम ठेकेदार हारून अल रसीद ने किया वहीं फोरकोर्ट का निर्माण सुजान सिंह और उनके पुत्र शोभासिंह ने कराया। इस भवन के लिए 400000 पौंड की राशि मंजूर की गई थी। परंतु इस इमारत के निर्माण में 17 साल का लम्बा समय लगा, जिससे इसकी लागत बढ़कर 877,136 पौंड (उस समय 12.8 मिलियन) हो गयी। इस इमारत के अलावा, मुगल गार्डन तथा कर्मचारियों के आवास पर आया वास्तविक खर्च 14 मिलियन था। कहा जाता है कि एडविन लुट्येन्स ने कहा था कि इस इमारत के निर्माण में लगी धनराशि दो युद्ध पोतों के निर्माण में लगने वाली धनराशि से कम थी। यह एक रोचक तथ्य है कि जिस भवन को पूरा करने की समय-सीमा चार वर्ष थी, उसे बनने में 17 वर्ष लगे और इसके निर्मित होने के अट्ठारहवें वर्ष भारत आजाद हो गया। इस विशाल भवन की चार मंजिलें हैं और इसमें 340 कमरे हैं। 200000 वर्गफीट के निर्मित स्थल वाले इस भवन के निर्माण में 700 मिलियन ईंटों तथा तीन मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर का प्रयोग किया गया था। इस इमारत के निर्माण में इस्पात का अत्यल्प प्रयोग हुआ है। राष्ट्रपति भवन का सबसे प्रमुख तथा विशिष्ट पहलू इसका गुम्बद है जो कि इसके ढांचे के ऊपर प्रमुखता से स्थापित है। यह काफी दूर से दिखाई देता है और दिल्ली के बीचों-बीच स्थित एक वृत्ताकार आधार पर टिकी हुई चित्ताकर्षक गोलाकार छत है| छज्जे पत्थर के ऐसे स्लैब होते हैं जिन्हें भवन की छत के नीचे लगाया जाता है और उनका डिजाइन इस तरह बनाया जाता है जिससे धूप खिड़कियों पर न पड़े तथा बरसात के मौसम में दीवारें पानी से बच सकें। छतरियां भवन के छतों पर लगी होती हैं तथा वे ऊंची होने के कारण क्षितिज पर अलग दिखाई देती हैं। छज्जों और छतरियों की तरह ही जालियां भी विशिष्ट भारतीय डिजाइन की हैं और इनसे राष्ट्रपति भवन के वास्तुशिल्प में चार-चांद लग जाते हैं। जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल के तौर पर पद ग्रहण किया और वे इस भवन में आकर रहने लगे, वे इसके कुछ ही कमरों में रहना पसंद करते थे जो अब राष्ट्रपति का फैमिली विंग है। तत्कालीन वायसराय के आवास को अतिथि विंग में बदल दिया गया था जहां दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारत में अपने प्रवास के दौरान ठहरते हैं।
ये जानकारी presidentofindia नाम के वेबसाइट से ली गयी है ।इस पोस्ट का मकसद जानकारी को एक दुसरे के साथ बाटना है।
मौजूदा राष्ट्रपति भवन पहले ब्रिटिश वायसराय का निवास स्थान था। इसके वास्तुकार एडविन लैंडसीयर लुट्येन्स थे।मुख्य इमारत का अधिकांश कार्य एक मुस्लिम ठेकेदार हारून अल रसीद ने किया वहीं फोरकोर्ट का निर्माण सुजान सिंह और उनके पुत्र शोभासिंह ने कराया। इस भवन के लिए 400000 पौंड की राशि मंजूर की गई थी। परंतु इस इमारत के निर्माण में 17 साल का लम्बा समय लगा, जिससे इसकी लागत बढ़कर 877,136 पौंड (उस समय 12.8 मिलियन) हो गयी। इस इमारत के अलावा, मुगल गार्डन तथा कर्मचारियों के आवास पर आया वास्तविक खर्च 14 मिलियन था। कहा जाता है कि एडविन लुट्येन्स ने कहा था कि इस इमारत के निर्माण में लगी धनराशि दो युद्ध पोतों के निर्माण में लगने वाली धनराशि से कम थी। यह एक रोचक तथ्य है कि जिस भवन को पूरा करने की समय-सीमा चार वर्ष थी, उसे बनने में 17 वर्ष लगे और इसके निर्मित होने के अट्ठारहवें वर्ष भारत आजाद हो गया। इस विशाल भवन की चार मंजिलें हैं और इसमें 340 कमरे हैं। 200000 वर्गफीट के निर्मित स्थल वाले इस भवन के निर्माण में 700 मिलियन ईंटों तथा तीन मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर का प्रयोग किया गया था। इस इमारत के निर्माण में इस्पात का अत्यल्प प्रयोग हुआ है। राष्ट्रपति भवन का सबसे प्रमुख तथा विशिष्ट पहलू इसका गुम्बद है जो कि इसके ढांचे के ऊपर प्रमुखता से स्थापित है। यह काफी दूर से दिखाई देता है और दिल्ली के बीचों-बीच स्थित एक वृत्ताकार आधार पर टिकी हुई चित्ताकर्षक गोलाकार छत है| छज्जे पत्थर के ऐसे स्लैब होते हैं जिन्हें भवन की छत के नीचे लगाया जाता है और उनका डिजाइन इस तरह बनाया जाता है जिससे धूप खिड़कियों पर न पड़े तथा बरसात के मौसम में दीवारें पानी से बच सकें। छतरियां भवन के छतों पर लगी होती हैं तथा वे ऊंची होने के कारण क्षितिज पर अलग दिखाई देती हैं। छज्जों और छतरियों की तरह ही जालियां भी विशिष्ट भारतीय डिजाइन की हैं और इनसे राष्ट्रपति भवन के वास्तुशिल्प में चार-चांद लग जाते हैं। जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल के तौर पर पद ग्रहण किया और वे इस भवन में आकर रहने लगे, वे इसके कुछ ही कमरों में रहना पसंद करते थे जो अब राष्ट्रपति का फैमिली विंग है। तत्कालीन वायसराय के आवास को अतिथि विंग में बदल दिया गया था जहां दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारत में अपने प्रवास के दौरान ठहरते हैं।
ये जानकारी presidentofindia नाम के वेबसाइट से ली गयी है ।इस पोस्ट का मकसद जानकारी को एक दुसरे के साथ बाटना है।
0 komentar:
Posting Komentar